ईश्वर तेरी चाह मुझे!
मुझे कुछ नहीं चाहिए देव तेरी माया से बस! प्रेम के मोती की चाह, मुझे तेरे हृदय-सागर में डुबो लिए जाती है| इस जहाँ के लिए तो निकृष्ट हो चला हूँ, जबसे तेरा भोलापन उतर आया है मुझमें पात्र बना हूँ परिहास का, इस पर भी काया तेरी करुणा के जल में, भीग जाना चाहती है! डूब जाता हूँ संसार-सागर के अथाह जल में जब विस्मृत हो जाता है तेरा नाम जो सच है ठोकरें खाता नियति की, अपनों से ही तब आत्महत्या के बहाने, अनायास ही तेरी याद आ जाती है! जब तक जहाँ जगता है, हलचल है, मेरे हृदय में, सजग हैं इन्द्रियाँ अपने रंग में काली नागिन-सी सुप्तावस्था ले संसार, तब अकेली, बेचैन ये आत्मा, कस्तूरी की चाह में भटकती-फिरती है| यों तो चहुँ ओर, तेरी ही प्रतिमूर्तियाँ हैं स्वर्ण-कलश लिए देने तेरा प्रेम, पर न जाने क्यों? प्...