ये हमारे हुक्मरान!
जब शक्ति प्राप्त करने की बात होती है तो लोग मूँछों पर ताव देते हुए, बल का प्रदर्शन करते हैं| दोनों हाथ जोड़कर नम्रता और विनय की मूर्ति बनते हैं| सुनहरे भविष्य के सपने दिखाते हैं| जीत के जश्न को पटाखे फोड़कर प्रकट करते हैं| कानून-नियम की तमाम बातें करते हैं| विरोधियों के काले कारनामों की सूची बनाते हैं| उनके अराजक साम्राज्य की तस्वीर बड़े करीने से गढ़ते हैं|
जब सत्ता के गलियारे में वे पहुँच जाते हैं तो वे तमाम उन बातों को, जो वे अब तक करते रहे; जैसा कि ऊपर वर्णन किया गया है, पूरी तरह भूल जाते हैं| वो मूँछों का ताव और वो ढोल-धमाकों के शोर में नाचना; सब स्मृति से उड़न-छू हो जाता है|
ये हमारे हुक्मरानों के लोकप्रिय लक्षण हैं| और संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य है कि फिर भी सब वैसा ही चल रहा है; सफलतापूर्वक! सिंहासन पर बैठकर एक ग्वाले को भी विक्रमादित्य की न्यायिकशक्ति मिल गई थी; पर यहाँ सब कर्तव्यनिष्ठा की शपथ भी भूल जाते हैं| एक बार यदि वे सिंहासन पर चढ़ गए तो उन्हें उतारना मुश्किल है| आपके पास कोई विकल्प ही नहीं सिवाय तमाशा देखने के|
ऐसा क्यों कि आप केवल मंत्री बनकर ही देश की सेवा कर सकते हैं| ऐसा किस शास्त्र में लिखा है? आप सुविधाभोगी होकर भी प्रजा की टोह लेने में असमर्थ हैं! लालबत्ती की जितनी चाह आपको होती है; पर उसकी गरिमा बनाए रखने की ज़रा भी फिक्र नहीं! ऐसा क्यों? आप लाखों में इतने खुशनसीब कि आपको जनता की सेवा के लिए अन्यतम अधिकार मिले| पर, आपमें उनको जनता के हित प्रयोग करने की ज़रा भी हिम्मत नहीं| ऐसा क्यों?
जवाब की प्रतीक्षा में एक लोकसेवक- गणपत स्वरुप पाठक
जब सत्ता के गलियारे में वे पहुँच जाते हैं तो वे तमाम उन बातों को, जो वे अब तक करते रहे; जैसा कि ऊपर वर्णन किया गया है, पूरी तरह भूल जाते हैं| वो मूँछों का ताव और वो ढोल-धमाकों के शोर में नाचना; सब स्मृति से उड़न-छू हो जाता है|
ये हमारे हुक्मरानों के लोकप्रिय लक्षण हैं| और संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य है कि फिर भी सब वैसा ही चल रहा है; सफलतापूर्वक! सिंहासन पर बैठकर एक ग्वाले को भी विक्रमादित्य की न्यायिकशक्ति मिल गई थी; पर यहाँ सब कर्तव्यनिष्ठा की शपथ भी भूल जाते हैं| एक बार यदि वे सिंहासन पर चढ़ गए तो उन्हें उतारना मुश्किल है| आपके पास कोई विकल्प ही नहीं सिवाय तमाशा देखने के|
ऐसा क्यों कि आप केवल मंत्री बनकर ही देश की सेवा कर सकते हैं| ऐसा किस शास्त्र में लिखा है? आप सुविधाभोगी होकर भी प्रजा की टोह लेने में असमर्थ हैं! लालबत्ती की जितनी चाह आपको होती है; पर उसकी गरिमा बनाए रखने की ज़रा भी फिक्र नहीं! ऐसा क्यों? आप लाखों में इतने खुशनसीब कि आपको जनता की सेवा के लिए अन्यतम अधिकार मिले| पर, आपमें उनको जनता के हित प्रयोग करने की ज़रा भी हिम्मत नहीं| ऐसा क्यों?
जवाब की प्रतीक्षा में एक लोकसेवक- गणपत स्वरुप पाठक
Comments
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स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाती तकनीक।
चार्वाक: जिसे धर्मराज के सामने पीट-पीट कर मार डाला गया।