संस्कृत - शास्त्र में उल्लेख है:
विद्या ददाति विनयम, विन्यादियाति पात्रताम।
पात्र त्वात धनं आप्नोति, धनाद धर्मं ततः सुखं।।
जैसा कि श्लोक में कहा गया- विद्या का अर्जन करने से विनय आती है यानी कि विद्यार्थी विनम्र आचरण करना सीखता है। जो विनम्रता का व्यवहार करता है, उसमें पात्रता आती है। अर्थात वह तमाम सांसारिक प्रयोजनों के लिए योग्यता प्राप्त कर लेता है। इसलिए योग्य व्यक्ति को धन की प्राप्ति होती है। वह संसार के वैभव का आनंद उठाता है और अपने धर्म यानी अपने कर्तव्यों का पालन करने में समर्थ होता है। जो व्यक्ति अपने धर्म का पालन करता है, अपने कर्तव्यों को पूरा कर पाता है; वह सुख को प्राप्त करता है।
विद्या ददाति विनयम, विन्यादियाति पात्रताम।
पात्र त्वात धनं आप्नोति, धनाद धर्मं ततः सुखं।।
जैसा कि श्लोक में कहा गया- विद्या का अर्जन करने से विनय आती है यानी कि विद्यार्थी विनम्र आचरण करना सीखता है। जो विनम्रता का व्यवहार करता है, उसमें पात्रता आती है। अर्थात वह तमाम सांसारिक प्रयोजनों के लिए योग्यता प्राप्त कर लेता है। इसलिए योग्य व्यक्ति को धन की प्राप्ति होती है। वह संसार के वैभव का आनंद उठाता है और अपने धर्म यानी अपने कर्तव्यों का पालन करने में समर्थ होता है। जो व्यक्ति अपने धर्म का पालन करता है, अपने कर्तव्यों को पूरा कर पाता है; वह सुख को प्राप्त करता है।
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