उड़ चले हैं पंछी, छोड़ अपना आशियाना ! आशियाने में पल रहे चहेतों को जिलाना!! आसमान में छाये हैं, ये भी तो बताना! रंग ख्वाबों से चुनने, यहां तक तो आना!! मंज़िल है भले दूर, पल का भी न ठिकाना! उड़ते-उड़ते सूरज तक, यूँ ही चले जाना!! इंतज़ार में हैं अपने, दिल-ऐ -मालिकाना! आएंगे घर लेकर, खुशियों का खज़ाना!! हो गया है रोशन, अमिताभ से ज़माना! तू आयी बड़ी देर से, अब देर से जाना!! -स्वरुप, गणपत स्वरुप :)
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सपना जो सच हुआ! जब हम छोटे बच्चे थे तो दुनियादारी से अनजान थे। किन्तु बचपन बीता पिताजी के बुद्धिजीवी मित्रों की बहसों को सुनते हुए, महाभारत-रामायण सुनते हुए! आज़ादी की गाथा का विश्लेषण सुनते हुए; "राष्ट्रधर्म" पढ़ते हुए और देशभक्तों के त्याग और बलिदान की गाथा पढ़ते हुए! जब राष्ट्र की बात करने वाले चुनाव हारते थे तो आश्चर्य होता था। मन में प्रश्न उठता था क़ि क्यों हारते हैं वो लोग जो सच में देश का विकास करना चाहते हैं? बचपन से ही क्रिकेट का भी बड़ा शौक था और जब भारत का मैच किसी से होता तो बड़ा उत्साह रहता था। लेकिन जीता हुआ मैच भारत हार जाता तो बड़ा दुःख होता कि हम हमेशा हारते ही क्यों हैं? हम जीतने के अधिकारी हैं। फिर हम क्यों हारते हैं? याद आता है वो हलधर किसान का चुनाव चिह्न! याद आता है वो इंग्लैण्ड से सेमीफइनल! ज़िन्दगी की इसी धूप-छाया में जीवन के उमंग भरे वसंत कब बीत गए कुछ पता ही न चला। भारत की बेबसी का वर्तमान देखते रहे और स्वर्णिम अतीत की कहानियाँ अपने छात्रों ...
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आजकल परिवर्तन लहर है। आमचुनाव के कारण सब ओर ऊर्जा से भरपूर एवं उत्साह से लबरेज़ भारतीय मतदान करने को न केवल उत्सुक हैं बल्कि ओरों को मतदान के लिए प्रेरित कर रहे हैं। परिवर्तन सोच का है और परिवर्तन अपनी ताक़त के अहसास का है। पहली बार लगने लगा है कि भावनाओं का तिलस्म लिए जो बाज़ीगर आता था और वोट झटक कर ५ साल के लिए नदारद हो जाता था; वो अब कहीं नहीं है। कदाचित ये तिलस्म काम में नहीं आयेगा। आज समय है कि खुद जागरूक रहकर दूसरों को जागरूक करने का ताकि जो भी सरकार बने वो हमारे प्रति उत्तरदायी हो। वो अपनी पार्टी का एजेंडा लागू करे पर प्रजा का हिट पहले करे। लोक सेवक की तरह काम करे। आप सभी उत्तरदायी सरकार चुनेंगे ऐसी आशा है।