आजकल परिवर्तन लहर है। आमचुनाव के कारण सब ओर ऊर्जा से भरपूर एवं उत्साह से लबरेज़ भारतीय मतदान करने को न केवल उत्सुक हैं बल्कि ओरों को मतदान के लिए प्रेरित कर रहे हैं। परिवर्तन सोच का है और परिवर्तन अपनी ताक़त के अहसास का है। पहली बार लगने लगा है कि भावनाओं का तिलस्म लिए जो बाज़ीगर आता था और वोट झटक कर ५ साल के लिए नदारद हो जाता था; वो अब कहीं नहीं है। कदाचित ये तिलस्म काम में नहीं आयेगा। आज समय है कि खुद जागरूक रहकर दूसरों को जागरूक करने का ताकि जो भी सरकार बने वो हमारे प्रति उत्तरदायी हो। वो अपनी पार्टी का एजेंडा लागू करे पर प्रजा का हिट पहले करे। लोक सेवक की तरह काम करे। आप सभी उत्तरदायी सरकार चुनेंगे ऐसी आशा है।
माइम कथा : आइ विल नॉट टॉलरेट दिस! (मसूरी इंटरनैशनल स्कूल द्वारा आयोजित अंतर्विद्यालयी साँस्कृतिक कार्यक्रम में प्रथम पुरस्कार से सम्मानित)
मंच के दोनों ओर से अभिनेता मंच पर आते हैं| आमने-सामने से गुज़र जाते हैं| दायीं ओर से निकलकर, अपने काल्पनिक मित्र को दूर से हाथ हिलाकर अभिवादन करता है| बाईं ओर से आनेवाला दाईं ओर पहुँचकर, अपना बैग उतारकर अपनी काल्पनिक डैस्क पर बैठता है| बायीं ओर पहुँच चुका अभिनेता अपना थैला रखकर, कागज़ की गेंद बनाकर काल्पनिक मित्र को फेंकता है, और उसे संकेत करता है कि मैंने नहीं फेंका| दाईं ओर वाला किताब निकालकर, मन लगाकर पढ़ रहा है| बाईं ओर वाला फिर कागज़ की गेंद फेंकने के फिराक में खुद फिसलकर गिर जाता है| इस पर पृष्ठभूमि से बच्चों के खिलखिलाने की आवाज़ गूँजती है| स्कूल की घण्टी बजती है| दाईं ओर वाला अपना बस्ता बाँधने लगता है| इधर, बाईं ओर वाले को किसी अध्यापक ने देख लिया था, इसलिए उसे वे आकर थप्पड़ मारते हैं| थप्पड़ खाकर उदास, झुके कंधों से कक्षा के बाहर चल देता है| उधर, दाईं ओर वाला, असावधानी के कारण डैस्क के पायदान से टकराकर गिरते-गिरते बचता है| फिर सीधे चलते-चलते काँच के दरवाज़े से अपना सिर “धड़” से टकरा लेता है| और जैसे-तैसे बाहर निकलता है| दोनों आमने-सामने आकर अपनी धुन में चलने क...
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