ऐसा हुआ कि अपराध की सजा मुकम्मल करने के बजाय ये व्यवस्था दी कि अपराधी की उम्र १८ साल और उसके ऊपर होगी! १८ साल से कम की आयु के लोगों को अपराधी न माना जाये। इस बात की तामील की जाये कि इस उम्र से एक दिन पहले भी यदि किसी ने कोई ऐसा कार्य किया है, जिसे कानून अपराध मानता है, वह अपराध नहीं माना जायेगा और ऐसे मामले में गिरफ़्तारी, अवैध होगी। पुलिस ये अपना फ़र्ज़ समझे कि इस तरह के मामले में कोई मर्ग़ क़ायम न जाये। इस तरह के मामलों से अदालत का क़ीमती वक़्त ज़ाया होता है!................... फ़ैसला आप पर!
माइम कथा : आइ विल नॉट टॉलरेट दिस! (मसूरी इंटरनैशनल स्कूल द्वारा आयोजित अंतर्विद्यालयी साँस्कृतिक कार्यक्रम में प्रथम पुरस्कार से सम्मानित)
मंच के दोनों ओर से अभिनेता मंच पर आते हैं| आमने-सामने से गुज़र जाते हैं| दायीं ओर से निकलकर, अपने काल्पनिक मित्र को दूर से हाथ हिलाकर अभिवादन करता है| बाईं ओर से आनेवाला दाईं ओर पहुँचकर, अपना बैग उतारकर अपनी काल्पनिक डैस्क पर बैठता है| बायीं ओर पहुँच चुका अभिनेता अपना थैला रखकर, कागज़ की गेंद बनाकर काल्पनिक मित्र को फेंकता है, और उसे संकेत करता है कि मैंने नहीं फेंका| दाईं ओर वाला किताब निकालकर, मन लगाकर पढ़ रहा है| बाईं ओर वाला फिर कागज़ की गेंद फेंकने के फिराक में खुद फिसलकर गिर जाता है| इस पर पृष्ठभूमि से बच्चों के खिलखिलाने की आवाज़ गूँजती है| स्कूल की घण्टी बजती है| दाईं ओर वाला अपना बस्ता बाँधने लगता है| इधर, बाईं ओर वाले को किसी अध्यापक ने देख लिया था, इसलिए उसे वे आकर थप्पड़ मारते हैं| थप्पड़ खाकर उदास, झुके कंधों से कक्षा के बाहर चल देता है| उधर, दाईं ओर वाला, असावधानी के कारण डैस्क के पायदान से टकराकर गिरते-गिरते बचता है| फिर सीधे चलते-चलते काँच के दरवाज़े से अपना सिर “धड़” से टकरा लेता है| और जैसे-तैसे बाहर निकलता है| दोनों आमने-सामने आकर अपनी धुन में चलने क...
Comments