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माइम कथा : आइ विल नॉट टॉलरेट दिस! (मसूरी इंटरनैशनल स्कूल द्वारा आयोजित अंतर्विद्यालयी साँस्कृतिक कार्यक्रम में प्रथम पुरस्कार से सम्मानित)

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  मंच के दोनों ओर से अभिनेता मंच पर आते हैं| आमने-सामने से गुज़र जाते हैं| दायीं ओर से निकलकर, अपने काल्पनिक मित्र को दूर से हाथ हिलाकर अभिवादन करता है| बाईं ओर से आनेवाला दाईं ओर पहुँचकर, अपना बैग उतारकर अपनी काल्पनिक डैस्क पर बैठता है| बायीं ओर पहुँच चुका अभिनेता अपना थैला रखकर, कागज़ की गेंद बनाकर काल्पनिक मित्र को फेंकता है, और उसे संकेत करता है कि मैंने नहीं फेंका| दाईं ओर वाला किताब निकालकर, मन लगाकर पढ़ रहा है| बाईं ओर वाला फिर कागज़ की गेंद फेंकने के फिराक में खुद फिसलकर गिर जाता है| इस पर पृष्ठभूमि से बच्चों के खिलखिलाने की आवाज़ गूँजती है| स्कूल की घण्टी बजती है| दाईं ओर वाला अपना बस्ता बाँधने लगता है| इधर, बाईं ओर वाले को किसी अध्यापक ने देख लिया था, इसलिए उसे वे आकर थप्पड़ मारते हैं| थप्पड़ खाकर उदास, झुके कंधों से कक्षा के बाहर चल देता है| उधर, दाईं ओर वाला, असावधानी के कारण डैस्क के पायदान से टकराकर गिरते-गिरते बचता है| फिर सीधे चलते-चलते काँच के दरवाज़े से अपना सिर “धड़” से टकरा लेता है| और जैसे-तैसे बाहर निकलता है| दोनों आमने-सामने आकर अपनी धुन में चलने के का

बच्चे मन के सच्चे मगर हिन्दी ज्ञान में कच्चे

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 बच्चों की परीक्षा थी| पठित काव्यांश में विद्युत का अर्थ पूछा गया| बच्चों ने अर्थ लिखने की जो भरसक कोशिश की, उसने दिल जीत लिया|
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असहिष्णुता? हम यहां भोपाल में रहते हैं! मैं हिन्दू हूँ! रोज़ के कामों से बाजार जाता हूँ । मुसलमान भी मिलते हैं , और अलग-अलग पंथ के मनाने वाले भी मिलते हैं । अपनी नौकरी में भी अलग-अलग पंथ के मानने वाले हैं । कभी हम उनकी नहीं सुनते, कभी वो हमारी नहीं सुनते । कभी हमने लोगों को यह कहते नहीं सुना कि भाई तुम यहां से भाग जाओ । या इस तरह का कुछ! हाँ, ये ऊपरी लोग यानि नेता-अभिनेता अक्सर ऐसी बातें ज़रूर करते हैं । आम लोगों को इतनी फुसत नहीं कि इन मसलों पर गौर करें क्योंकि उनके मसले उनके परिवार की दिक्कतें और परेशानियाँ हैं । ये बड़ी बातें हैं जो बड़े लोगों को ही शोभा देती हैं क्योंकि उनको पूरी फुर्सत है देश की प्रगति पर नज़र रखने की । अब मामला ये है कि कौन देश की सही चिंता कर रहा है और कौन सिर्फ में हाथ धो रहा है। समय के साथ देश के निवासियों को जागरूक नागरिक की भूमिका निभानी चाहिए । कभी जब देश में असली समस्या को छोड़कर नयी समस्या रचने की कोई कोशिश करे तो, उसे जवाब तो मिलना चाहिए । बस अपना विरोध जताने के लिए उसे कैमरे से अलग कोई और  माध्यम रचना होगा । कैमरे और अख़बार तो आपके पास दौड़कर आएंगे, और ज़
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ऐसा हुआ कि अपराध की सजा मुकम्मल करने के बजाय ये व्यवस्था दी कि अपराधी की उम्र १८ साल और उसके ऊपर होगी! १८ साल से कम की आयु के लोगों को अपराधी न माना जाये। इस बात की तामील की जाये कि इस उम्र से एक दिन पहले भी यदि किसी ने  कोई ऐसा कार्य किया है, जिसे कानून अपराध मानता है, वह अपराध नहीं  माना  जायेगा और ऐसे मामले में गिरफ़्तारी, अवैध होगी। पुलिस ये अपना फ़र्ज़ समझे कि इस तरह के मामले में कोई मर्ग़ क़ायम न  जाये। इस तरह के मामलों से अदालत का क़ीमती वक़्त ज़ाया होता है!................... फ़ैसला आप पर!
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उड़ चले हैं पंछी, छोड़ अपना आशियाना ! आशियाने में पल रहे चहेतों को जिलाना!! आसमान में छाये हैं, ये भी तो बताना! रंग ख्वाबों से चुनने, यहां तक तो आना!! मंज़िल है भले दूर, पल का भी न ठिकाना! उड़ते-उड़ते सूरज तक, यूँ ही चले जाना!! इंतज़ार में हैं अपने, दिल-ऐ -मालिकाना! आएंगे घर लेकर,  खुशियों का खज़ाना!! हो गया है रोशन, अमिताभ से ज़माना! तू आयी बड़ी देर से, अब देर से जाना!!                                           -स्वरुप, गणपत स्वरुप :) 
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सपना जो सच हुआ!          जब हम छोटे बच्चे थे तो दुनियादारी से अनजान थे। किन्तु बचपन बीता पिताजी के बुद्धिजीवी मित्रों की बहसों को सुनते हुए, महाभारत-रामायण सुनते हुए! आज़ादी की गाथा का विश्लेषण सुनते हुए; "राष्ट्रधर्म" पढ़ते हुए और देशभक्तों के त्याग और बलिदान की गाथा पढ़ते हुए! जब राष्ट्र की बात करने वाले चुनाव हारते थे तो आश्चर्य होता था। मन में प्रश्न उठता था क़ि क्यों हारते हैं वो लोग जो सच में देश का विकास करना चाहते हैं?            बचपन से ही क्रिकेट का भी बड़ा शौक था और जब भारत का मैच किसी से होता तो बड़ा उत्साह रहता था। लेकिन जीता हुआ मैच भारत हार जाता तो बड़ा दुःख होता कि हम हमेशा हारते ही क्यों हैं? हम जीतने के अधिकारी हैं। फिर हम क्यों हारते हैं?          याद आता है वो हलधर किसान का चुनाव चिह्न! याद आता है वो इंग्लैण्ड  से सेमीफइनल! ज़िन्दगी की इसी धूप-छाया में जीवन के उमंग भरे वसंत कब बीत गए कुछ पता ही न चला। भारत की बेबसी का वर्तमान देखते रहे और स्वर्णिम अतीत की कहानियाँ  अपने छात्रों को सुना-सुना कर मन में अपने कर्त्तव्य की अनुभूति भर करते रहे कि ये देश का भविष्