ऐसा हुआ कि अपराध की सजा मुकम्मल करने के बजाय ये व्यवस्था दी कि अपराधी की उम्र १८ साल और उसके ऊपर होगी! १८ साल से कम की आयु के लोगों को अपराधी न माना जाये। इस बात की तामील की जाये कि इस उम्र से एक दिन पहले भी यदि किसी ने कोई ऐसा कार्य किया है, जिसे कानून अपराध मानता है, वह अपराध नहीं माना जायेगा और ऐसे मामले में गिरफ़्तारी, अवैध होगी। पुलिस ये अपना फ़र्ज़ समझे कि इस तरह के मामले में कोई मर्ग़ क़ायम न जाये। इस तरह के मामलों से अदालत का क़ीमती वक़्त ज़ाया होता है!................... फ़ैसला आप पर!
आगरा बाज़ार, एक ऐसा नाटक कि बस बार-बार देखो!
आगरा बाज़ार, एक ऐसा नाटक कि बस बार-बार देखो! उसकी बुनावट ऐसी है कि नाटक शुरू होने के बाद, कब वह ख़त्म हो जाता है, पता ही नहीं लगता| नज़ीर अक़बराबादी की एक-एक नज़्म, ग़ज़ल इंसानियत से ऐसी चस्पा हैं कि बस दर्शक, बरबस ही इंसान बन जाता है; भले ही ढाई घंटे के लिए ही क्यों न बना हो! इस नाटक के दो मुख्य पात्र हैं| और ताज़्ज़ुब की बात है कि वे दोनों ही नाटक में रहते हुए भी, पूरी तरह से अनुपस्थित रहते हैं| एक आम जनता की रूह और आवाज़- शायर नज़ीर अक़बराबादी और दूसरे इस नाटक के जुलाहे- पद्म विभूषण स्वर्गीय हबीब तनवीर| इस नाटक का एक दृश्य बड़ा ही लुभावना है जबकि किताब वाले के यहाँ एक नौजवान लड़का [पुरुषोत्तम भट्ट] नज़ीर की एक ग़ज़ल सुनाता है और वो अनजाने ही दाद देते रहते हैं| आख़िर में, मक़ता पर उन्हें शायर का पता पड़ता है कि ये तो वो ही शायर है जिसकी हम आलोचना करते रहते हैं| बाद में, वो पतंग वाले के यहाँ बुला लिया जाता है| और फिर मज़े से महफ़िल जमती है| यहाँ, सब आमजन इस लड़के से नज़ीर की शायरी सुनते हैं| पेश-ए-खिदमत है- आख़िर तू मेरा नाम तो, लीजो न भले लेकिन| कहना कोई मरता है, तेरा चाहने वाला| जै
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