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Showing posts from 2009

शर्मसार है लोकतंत्र, राज साहेब!

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शर्मसार है लोकतंत्र, राज साहेब! मैं आपके सामने क्या हूँ, जो आपको सलाह देने की जुर्रत कर सकूँ? पर कुछ बातें स्मृति में आती हैं| छत्रपति शिवाजी महाराज, जिन्होंने मुग़ल साम्राज्य से लोहा लिया और उसकी नाक के नीचे महाराष्ट्र की स्थापना की| आपने उनके बारे में पढ़ा ही होगा| जिस महाराष्ट्र में आप रह रहे हैं, यह उनकी ही देन है अन्यथा मराठों को अन्य शक्तियों का साथ कब मिला? उन्होंने अपनी सेना के संगठन में हरेक वर्ग का सहयोग लिया| फिर मुझे याद आता है बालासाहेब के बारे में कि उन्होंने मुंबई में उन दिनों समानांतर सरकार सफलतापूर्वक चलाई जबकि वहाँ दाउद इब्राहिम का ज़बरदस्त दखल था| तब शायद आप बालक ही हों! अब मैंने देखा है कि पिछले एक दशक में कुछ लोग बड़े हो गए और उन्होंने बालासाहेब से नाता तोड़कर अपना एक नया साम्राज्य बनाने की कोशिश की है| आप तो जानते हैं कि आपसी कलह परिवार का विनाश करती है और बाहरी  ताकतों को जलसा करने का मौका देती है| आज आप देखते ही हैं कि आपका सयुंक्त परिवार सत्ता से कितनी दूर है! आपको ज़रूर मंथन करना चाहिए| यदि व्यक्ति को अपने पर भरोसा है तो उसे अपना रास्ता अलग बनाने का हक़ है; पर

ये हमारे हुक्मरान!

जब शक्ति प्राप्त करने की बात होती है तो लोग मूँछों पर ताव देते हुए, बल का प्रदर्शन करते हैं| दोनों हाथ जोड़कर नम्रता और विनय की मूर्ति बनते हैं| सुनहरे भविष्य के सपने दिखाते हैं| जीत के जश्न को पटाखे फोड़कर प्रकट करते हैं| कानून-नियम की तमाम बातें करते हैं| विरोधियों के काले कारनामों की सूची बनाते हैं| उनके अराजक साम्राज्य की तस्वीर बड़े करीने से गढ़ते हैं|                                         जब सत्ता के गलियारे में वे पहुँच जाते हैं तो वे तमाम उन बातों को, जो वे अब तक करते रहे; जैसा कि ऊपर वर्णन किया गया है, पूरी तरह भूल जाते हैं| वो मूँछों का ताव और वो ढोल-धमाकों के शोर में नाचना; सब स्मृति से उड़न-छू हो जाता है|                                         ये हमारे हुक्मरानों के लोकप्रिय लक्षण हैं| और संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य है कि फिर भी सब वैसा ही चल रहा है; सफलतापूर्वक! सिंहासन पर बैठकर एक ग्वाले को भी विक्रमादित्य की न्यायिकशक्ति मिल गई थी; पर यहाँ सब कर्तव्यनिष्ठा की शपथ भी भूल जाते हैं| एक बार यदि वे सिंहासन पर चढ़ गए तो उन्हें उतारना मुश्किल है| आपके पास कोई विकल्प ही नहीं स

रंगमंच की दुनिया! मनमाफ़िक दुनिया!!

इस संसार में आपको ईश्वर ने जैसा बनाकर भेजा है; आप वैसी ही क़द-काठी, रंग-रूप और समाज से मिले हालातों के बंधन में जकड़े हुए जीवन जीते हैं| "नाटक" में ये बंधन नहीं होते| यहाँ आपको मनमाफ़िक दुनिया में जीने का एक मौका मिलता है|   -गणपत स्वरुप पाठक

अब्दुल कलाम के विचार!

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अभी हाल ही में, मुझे मेरे मित्र का इलेक्ट्रॉनिक-संदेश मिला जिसमें पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के एक लेख की प्रति थी लेख में जो कहा गया था वह हमें जगाने को पर्याप्त था हम गुलाम इसलिए बने क्योंकि हम जागरूक नहीं थे आज भी तरक्की के मामले में हम स्वावलंबी नहीं हैं हम अपने देश के नेताओं को दोष देते हैं, व्यवस्था को दोष देते हैं, परन्तु ये भूल जाते हैं कि हम में से ही नेता बनते हैं और हम ही मिलकर व्यवस्था का जाल बुनते हैं मुझे याद आता है, आमिर खान का "अहा ज़िन्दगी" में लिखा लेख उस लेख में भी हमारे उन नागरिकों के बारे में कहा गया है जो कुछ करने के बजाय केवल दूसरों पर दोषारोपण करने में माहिर हैं यहाँ देश के लिए दो महत्त्पूर्ण मुद्दे रखना चाहता हूँ- एक सांप्रदायिक झगड़े और दूसरा देश की समृद्धि!! पहले मुद्दे पर में आमिर खान से सहमत हूँ कि सांप्रदायिक झगड़े तभी बड़ा रूप लेते हैं जबकि आप उसमें हिंदू-मुसलमान वाली बात नज़र करते हैं यदि देखा जाए तो झगड़ा तो वह वैसा ही है जैसे कि दो भाई अपने अधिकारों के लिए झगड़ते हैं या दो पड़ोसी किसी घरेलू विवाद के कारण झगड़ते हैं और बाद में उनके क़रीबी रिश्तेद

मरु-जीवन की मृग-तृष्णा!!

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मरु-जीवन की मृग-तृष्णा में, किसे स्वप्न साकार मिला? मिटटी के किस लौंदे को कब मनचाहा आकार मिला? कोई चाहक इस जग का तो कोई चाहक उस जग का; हाथ पसारे भिक्षुक जैसा यह सारा संसार मिला!!! ऊपर लिखी पंक्तियाँ संसार की वास्तविकता का बयान करतीं हैं! फ़िर भी ये जीवन है की बेरोक- टोक, अनवरत चलता रहता है इसी को जिजीविषा कह लो या मानव का अदम्य साहस कि सब-कुछ एक खेल कि तरह चलता रहता है; और हम इसके किरदार की तरह कष्टों को सहन करते हुए, अपनी भूमिका निभाते हुए जी जाहे हैं! आपका स्वरुप -गणपत स्वरुप पाठक २८ अगुस्त २००९ शुक्रवार