मरु-जीवन की मृग-तृष्णा!!
मरु-जीवन की मृग-तृष्णा में, किसे स्वप्न साकार मिला?

मिटटी के किस लौंदे को कब मनचाहा आकार मिला?
कोई चाहक इस जग का तो कोई चाहक उस जग का;
हाथ पसारे भिक्षुक जैसा यह सारा संसार मिला!!!
ऊपर लिखी पंक्तियाँ संसार की वास्तविकता का बयान करतीं हैं! फ़िर भी ये जीवन है की बेरोक-टोक, अनवरत  चलता रहता है इसी को जिजीविषा कह लो या मानव का अदम्य साहस कि सब-कुछ एक खेल कि तरह चलता रहता है; और हम इसके किरदार की तरह कष्टों को सहन करते हुए, अपनी भूमिका निभाते हुए जी जाहे हैं!
चलता रहता है इसी को जिजीविषा कह लो या मानव का अदम्य साहस कि सब-कुछ एक खेल कि तरह चलता रहता है; और हम इसके किरदार की तरह कष्टों को सहन करते हुए, अपनी भूमिका निभाते हुए जी जाहे हैं!
 चलता रहता है इसी को जिजीविषा कह लो या मानव का अदम्य साहस कि सब-कुछ एक खेल कि तरह चलता रहता है; और हम इसके किरदार की तरह कष्टों को सहन करते हुए, अपनी भूमिका निभाते हुए जी जाहे हैं!
चलता रहता है इसी को जिजीविषा कह लो या मानव का अदम्य साहस कि सब-कुछ एक खेल कि तरह चलता रहता है; और हम इसके किरदार की तरह कष्टों को सहन करते हुए, अपनी भूमिका निभाते हुए जी जाहे हैं!
आपका स्वरुप 
-गणपत स्वरुप पाठक 
२८ अगुस्त २००९ 
शुक्रवार 

 
 
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