राजनीति



ओह! क्या राजनीति थी| पहली बार शायद झा साहेब गच्चा खा गए| ऐसा जाना जाता है कि वे फिल्म सम्पादन की  कला से प्रोन्नत होकर एक फिल्म निर्माता और निर्देशक बने हैं| पर यदि आगे चलकर राजनीति  को ऍफ़ टी आई या ऐसे किसी सिनेमा विद्यालयों में पढ़ाया जाएगा तो यह अपने बुरे सम्पादन के लिए जानी जायेगी| पहली नज़र में देखा जाए तो इसके घटिया सम्पादन के कारण इसकी बढ़िया कहानी पर बड़ा बुरा असर पड़ा और दर्शक जिस उत्साह से सिनेमाघर में घुसता है, ठगा-सा रह जाता और बड़े तनाव में सिनेमाघर से बाहर निकलता है| ऐसी कहानी को परदे पर उतारना बड़ा मुश्किल है, इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं पर जहाँ सवाल आता है कि- जिसने १२० रुपये खर्चे हैं उसके हाथ क्या आता है? बस यहीं झा साहेब गच्चा खा जाते हैं!

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