असहिष्णुता?

हम यहां भोपाल में रहते हैं! मैं हिन्दू हूँ! रोज़ के कामों से बाजार जाता हूँ । मुसलमान भी मिलते हैं , और अलग-अलग पंथ के मनाने वाले भी मिलते हैं । अपनी नौकरी में भी अलग-अलग पंथ के मानने वाले हैं । कभी हम उनकी नहीं सुनते, कभी वो हमारी नहीं सुनते । कभी हमने लोगों को यह कहते नहीं सुना कि भाई तुम यहां से भाग जाओ । या इस तरह का कुछ! हाँ, ये ऊपरी लोग यानि नेता-अभिनेता अक्सर ऐसी बातें ज़रूर करते हैं । आम लोगों को इतनी फुसत नहीं कि इन मसलों पर गौर करें क्योंकि उनके मसले उनके परिवार की दिक्कतें और परेशानियाँ हैं । ये बड़ी बातें हैं जो बड़े लोगों को ही शोभा देती हैं क्योंकि उनको पूरी फुर्सत है देश की प्रगति पर नज़र रखने की । अब मामला ये है कि कौन देश की सही चिंता कर रहा है और कौन सिर्फ में हाथ धो रहा है। समय के साथ देश के निवासियों को जागरूक नागरिक की भूमिका निभानी चाहिए । कभी जब देश में असली समस्या को छोड़कर नयी समस्या रचने की कोई कोशिश करे तो, उसे जवाब तो मिलना चाहिए । बस अपना विरोध जताने के लिए उसे कैमरे से अलग कोई और  माध्यम रचना होगा । कैमरे और अख़बार तो आपके पास दौड़कर आएंगे, और ज़रूर आएंगे बस तरीका अनुशासन का हो । जैसे चौपाल पर इकट्ठे हो गए और आपस में विचार - मीमांसा की कि ये मसला क्या था । इतनी सी बात से समाज में अचानक जो राजनीति के धुंध भरे बादल उमड़ने-घुमड़ने लगते हैं वे वहीँ शांत होने लगेंगे । नयी पीढ़ी सीखेगी कि प्रजातंत्र में राजा राजनीतिक पार्टी या उसकी बनायी सरकार नहीं होती बल्कि प्रजा होती है जिसने राजदण्ड उसको सौंपा है । यानि राजदंड रहेगा तो बस प्रजा के ही हाथों में!


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